Thursday, December 27, 2018

सऊदी शाह ने कतरे विदेश मंत्री ज़ुबैर के पर, ओहदा घटा

सऊदी अरब के शाह सलमान ने सरकार की जिम्मेदारियों में फेरबदल करते हुए विदेश मंत्री आदिल अल जुबैर का ओहदा घटा दिया है.

आदिल अल जुबैर को विदेश राज्यमंत्री बनाया गया है. उनकी जगह इब्राहिम अल आसफ को विदेश मंत्री नियुक्त किया गया है.

इस फेरबदल को पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या से जोड़कर देखा जा रहा है.

पत्रकार ख़ाशोज्जी की सऊदी अरब के तुर्की में इस्तांबुल स्थित वाणिज्यिक दूतावास में बीते अक्टूबर में हत्या हो गई थी. उसके बाद से ही सऊदी अरब को लेकर दुनिया भर में मुश्किल सवालों का सामना करना पड़ रहा है.

ये माना जाता है कि सऊदी अरब की वास्तविक सत्ता क्राउन प्रिंस के ही हाथों में है. ख़ाशोज्जी वाशिंगटन पोस्ट के लिए आलेख लिखते थे. अपने कॉलम में वो क्राउन प्रिंस सलमान की आलोचना करते रहे थे.

ख़ाशोज्जी तीन अक्टूबर को इस्तांबुल स्थित सऊदी अरब के वाणिज्यिक दूतावास में गए थे और उसके बाद से उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी. शुरुआत में सऊदी अरब ने कहा था कि उसे ख़ाशोज्जी के बारे में कोई जानकारी नहीं है. बाद में सऊदी अरब ने माना कि उनकी हत्या हो गई थी.

सऊदी अरब का कहना है कि इसमें शाही परिवार की कोई भूमिका नहीं थी. हत्या का आरोप 'बेकाबू अधिकारियों' पर लगाया गया.

इस मामले में आदिल जुबैर सऊदी अरब का पक्ष रख रहे थे. उन्होंने ख़ाशोज्जी मामले की कवरेज को लेकर पश्चिमी देशों की मीडिया पर 'उन्माद' फैलाने का आरोप भी लगाया था.

कार्रवाई करते दिखना चाहता है सऊदी अरब
बीबीसी के सुरक्षा संवाददाता फ्रैंक गार्डनर का आकलन है कि ऐसा संभव नहीं लगता कि आदिल अल जुबैर को ख़ाशोज्जी की हत्या के बारे में कुछ भी पता नहीं हो. वाणिज्यक दूतावास उनकी जिम्मेदारी के अंदर ही आता है और ये अपराध भी दूतावास में ही हुआ.

इस मामले में कुछ होता दिखना चाहिए.

जुबैर को राज्यमंत्री बनाए जाने से निश्चित ही उनका ओहदा घटा है. उनकी जगह लाए गए इब्राहिम अल आसफ के पास अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का सीमित अनुभव है.

गार्डनर कहते हैं कि जुबैर विश्व पटल पर सऊदी अरब के दूत की तरह थे. वो सऊदी अरब के पहले अधिकारी थे जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर ये माना कि ख़ाशोज्जी की हत्या हुई है.

Tuesday, December 18, 2018

सबरीमला मंदिर में किन्नरों ने कैसे की पूजा अर्चना?

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में केरल में स्थित सबरीमला मंदिर में महिलाओं को जाने की इजाज़त दी थी. लेकिन इसके बावजूद अब तक पचास से कम उम्र वाली महिलाएं इस मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाई हैं.

हालांकि, अब चार किन्नरों को मंदिर में प्रवेश करके स्वामी अयप्पा की प्रार्थना करने में सफ़लता पाई है.

काली साड़ी पहनकर मंदिर परिसर में पहुंची इन चारों किन्नरों की सुरक्षा व्यवस्था की ज़िम्मेदारी केरल पुलिस ने अपने हाथों में ली थी.

हाईकोर्ट की समिति ने मांगी सुरक्षा
केरल हाईकोर्ट के आदेश पर गठित दो जजों और एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी वाली तीन सदस्यीय समिति ने केरल पुलिस को इन किन्नरों को सुरक्षा मुहैया कराने की मांग की थी.

इन चार किन्नरों में से एक किन्नर तृप्ति ने बीबीसी हिंदी से बात करते हुए बताया, "मैं बहुत बहुत खुश हूं क्योंकि हम स्वामी अयप्पा की प्रार्थना कर सके. हम स्वामी अयप्पा के भक्त हैं. हमने ये तीर्थ यात्रा करते हुए सभी नियमों का पालन किया है. हालांकि, रविवार को पुलिस ने सुरक्षा मुहय्या कराने के नाम पर हमें रोका था."

बीते दिनों मंदिर में जाने वाले भक्तों की सुरक्षा का मुद्दा काफ़ी चर्चा में रहा है क्योंकि बीजेपी और उसके सहयोगी संगठनों के विरोध के बाद कई सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत महिलाओं को मंदिर में जाने से रोका गया था.

इन संगठनों ने मांग की थी कि सबरीमला मंदिर में सालों से चल रही परंपरा का पालन किया जाए.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बीती 28 सितंबर को अपना फ़ैसला सुनाते हुए मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की इजाज़त दे दी.

कुछ पुलिसवालों ने किन्नरों से कहा था कि वे पुरुषों की तरह कपड़े पहनकर मंदिर में प्रवेश करें.

लेकिन किन्नरों ने इसका विरोध किया और कोट्टयम के प्रमुख पुलिस अधिकारी हरिशंकर से इस बारे में शिकायत की.

इसके बाद हरिशंकर ने उन्हें सुझाव दिया कि वह केरल हाईकोर्ट की बनाई हुई समिति से इजाज़त ले लें क्योंकि सुरक्षा से जुड़े मामलों पर फ़ैसले लेने का अधिकार इस समिति को दिया गया है.

जब इस समिति के पास किन्नरों का ये समूह गया तो समिति ने बताया कि क़ानूनी रूप से उन्हें मंदिर में प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता है. क्योंकि वे 50 से कम उम्र वाली महिलाएं नहीं है.

Friday, December 14, 2018

कांग्रेस में 1952 में हुए पहले चुनाव से ही होता रहा है सीएम के लिए सियासी संघर्ष

विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के तीन दिन बाद कांग्रेस ने शुक्रवार को राजस्थान में मुख्यमंत्री तय किया। अशोक गहलोत तीसरी बार सीएम बनेंगे और सचिन पायलट डिप्टी सीएम होंगे। मुख्यमंत्री पद के लिए सियासी संघर्ष के बीच नाम फाइनल करने को लेकर दोनों नेताओं की कांग्रेस आलाकमान के साथ कई बैठकें हुईं।

1952 में राजस्थान के पहले चुनाव में कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी, तब भी सीएम पद की वजह से कार्यकर्ता दो गुट में बंट गए थे। एक ओर जयनारायण व्यास के समर्थक तो दूसरी ओर टीकाराम पालीवाल के। इसके बाद 1954 में मोहनलाल सुखाडिया को लेकर ऐसे ही हालात बने। 1998 में भी जब कांग्रेस ने बहुमत के साथ सरकार बनाई तो परसराम मदेरणा की जगह गहलोत को सीएम बना दिया गया।

1952 : जयनारायण vs टीकाराम

कांग्रेस जीती। मगर मुख्यमंत्री पद के  दावेदार जयनारायण व्यास दोनों सीटों से हार गए। लिहाजा टीकाराम पालीवाल सीएम बन गए। सालभर में ही व्यास उपचुनाव जीत फिर मुख्यमंत्री बन गए। राजस्थान के कांग्रेसियों को व्यास का इस तरह सीएम बनना पचा नहीं और उन्होंने विद्रोह कर दिया।

1954 : जयनारायण vs सुखाडिया

जयनारायण व्यास का विरोध इतना बढ़ गया कि विधायक दल के नेता के लिए दोबारा चुनाव कराना पड़ा। व्यास मोहनलाल सुखाडिया से आठ वोट से हार गए। सुखाडिया महज 38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बने। उन्होंने 17 साल राज किया। 1967 में कांग्रेस को बहुमत न मिलने के बाद भी वे सियासी तिकड़मों से जैसे-तैसे मुख्यमंत्री बने।

1971 : सुखाडिया vs बरकतुल्ला

इंदिरा गांधी 1969 के राष्ट्रपति चुनावों से ही सुखाडिया से नाराज थीं। लिहाजा उन्होंने सुखाडिया को सीएम पद से बेदखल करते हुए बरकतुल्ला खां को बैठा दिया। पर दो साल बाद 1973 में बरकतुल्ला की असामयिक मृत्यु हो गई। फिर सीएम पद के लिए हरिदेव जोशी और रामनिवास मिर्धा में मुकाबला हुआ,जिसमें जोशी जीते। तब भी सियासी माहौल गर्मा गया था।

1998 : परसराम मदेरणा vs गहलोत

कांग्रेस 153 सीटों के भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटी तो माना जा रहा था कि जाटों के जबरदस्त समर्थन से कांग्रेस को यह कामयाबी मिली है। तब वरिष्ठ जाट नेता परसराम मदेरणा नेता प्रतिपक्ष थे और अशोक गहलोत प्रदेशाध्यक्ष। आलाकमान की पसंद पर गहलोत सीएम बने। जाट नाराज हो गए, जिसका खामियाजा बाद के चुनावों में भुगतना पड़ा।

2008: सीपी जोशी vs गहलोत

कांग्रेस के फिर से सत्ता में आने के बाद सीपी जोशी प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते सीएम पद के बड़े दावेदार थे, लेकिन वे एक वोट से चुनाव हार गए। बुजुर्ग कांग्रेसी नेता शीशराम ओला ने ताल ठोंक दी। दिग्विजय पर्यवेक्षक बनकर आए। कांग्रेस आलाकमान ने गुप्त पर्चियों से राय जानी। इसमें अशोक गहलोत विधायक दल के नेता चुने गए।