Monday, March 25, 2019

योगी आदित्यनाथ के 'नोट के बदले वोट' वाले वीडियो का सच

लोकसभा चुनाव-2019 के मद्देनज़र सोशल मीडिया पर एक वीडियो इस दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने वोटर्स को रिश्वत देने की कोशिश की.

क़रीब डेढ़ मिनट के इस वायरल वीडियो में आदित्यनाथ योगी आराम-कुर्सी पर बैठे हुए दिखाई देते हैं और उनके बगल में खड़ा एक शख़्स लोगों को नाम से बुलाकर उन्हें पैसे दे रहा है.

वीडियो में दिखता है कि अधिकांश लोग पैसे मिलने के बाद आदित्यनाथ योगी के आगे हाथ जोड़ते हैं और उनके पाँव को भी हाथ लगाते हैं.

फ़ेसबुक पर 'I support Ravish kumar NDTV' नाम के एक पब्लिक ग्रुप में इस वीडियो को हाल ही में शेयर किया गया था जहाँ से 70 हज़ार से ज़्यादा लोग इसे शेयर कर चुके हैं.

लोगों ने इस वीडियो के आधार पर ये सवाल उठाया है कि 'अगर आगामी चुनाव से पहले यह सब हो रहा है, तो भारत का चुनाव आयोग क्या कर रहा है?'

लेकिन अपनी पड़ताल में हमने पाया कि लाखों बार देखे जा चुके इस वीडियो का आगामी लोकसभा चुनाव से कोई वास्ता नहीं है.

वायरल हो रहे वीडियो को 'Amit Shah Fans' नाम के एक फ़ेसबुक पेज से लिया गया है जिसे क़रीब 6 लाख लोग फ़ॉलो करते हैं.

इस पेज पर यह वीडियो 13 मार्च 2019 की शाम को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' टाइटल के साथ पोस्ट किया गया था जिसे अब तक 17 लाख से ज़्यादा बार देखा जा चुका है और 6 हज़ार से ज़्यादा लोग इसे शेयर कर चुके हैं.

इस वीडियो को ग़ौर से देखने पर पता चलता है कि आदित्यनाथ योगी के बगल में खड़ा शख़्स लोगों को जो नोट बाँट रहा है वो 2016 में नोटबंदी के दौरान बंद हुए पुराने 500 के नोट हैं.

वीडियो के फ़्रेंम सर्च करने पर हमें अप्रैल 2012 में यू-ट्यूब पर अपलोड हुआ यही वीडियो मिला. उस समय आदित्यनाथ योगी उत्तर प्रदेश की गोरखपुर लोकसभा सीट से सांसद थे.

इस वीडियो को साल 2012 में विनय कुमार गौतम नाम के एक यू-ट्यूबर ने पोस्ट किया था.

गौतम के अनुसार अप्रैल 2012 में गोरखपुर ज़िले के कई खेतों में आग लग गई थी. गोरखपुर से उस समय के सांसद आदित्यनाथ योगी ने पीड़ित किसानों को कुछ सहायता राशि दिलवाई थी. हर पीड़ित परिवार को क्षति के आधार पर डेढ-दो हज़ार रुपये दिए गए थे.

हमने इस घटना की अधिक जानकारी के लिए आदित्यनाथ योगी के दफ़्तर में बात करने की कोशिश भी की. उनका जवाब मिलने पर हम उसे इस कहानी में जोड़ेंगे.

Wednesday, March 20, 2019

बिहार: बड़ा कुनबा ही बना महागठबंधन के लिए बोझ

लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण का नामांकन 25 मार्च को ख़त्म होने जा रहा है और दूसरे चरण का शुरू होने जा रहा.

बिहार में 11 अप्रैल से पहले चरण का मतदान शुरू हो रहा है लेकिन राष्ट्रीय जनता दल की अगुवाई वाले महागठबंधन में सीटों के बँटवारे पर अब भी पेच फँसा हुआ है.

कांग्रेस 11 सीटों की मांग कर रही है जबकि लालू प्रसाद नौ और एक राज्यसभा सीट से ज़्यादा देने को तैयार नहीं हैं.

जीतन राम मांझी तीन सीट की मांग कर रहे हैं और उपेंद्र कुशवाहा पांच. सन ऑफ़ मल्लाह के नाम से चर्चित मुकेश साहनी ने तीन सीटों की मांग की है. इसके साथ ही सीपीआई और सीपीआईएमएल को भी दो सीटें देने की बात है.

कांग्रेस की 11 सीटों पर आरजेडी सहमत नहीं है. इसलिए सीटों के बँटवारे की घोषणा अब तक लटकी हुई है. न कांग्रेस तैयार है और न ही आरजेडी.

मांझी अपने उम्मीदवार को औरंगाबाद से चुनाव लड़ाना चाहते हैं और आरजेडी इस पर तैयार भी है लेकिन कांग्रेस बिल्कुल तैयार नहीं है. औरंगाबाद ऐतिहासिक रूप से क्रांग्रेस की सीट रही है. इसके साथ ही औरंगाबाद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह का भी इलाक़ा है.

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि औरंगाबाद में राजपूत बहुसंख्यक हैं और वो कांग्रेस के साथ रहे हैं. ऐसे में मांझी के उम्मीदवार को यहां से चुनाव लड़ाने का कोई तर्क नहीं है.

औरंगाबाद से सत्येंद्र सिंह के बेटे और दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर निखिल कुमार कांग्रेस से सांसद बनते रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस शायद ही माने कि औरंगाबाद से जीतन मांझी का उम्मीदवार चुनाव लड़े.

उपेंद्र कुशवाहा काराकाट से ही चुनाव लड़ेंगे. 2014 में भी वो एनडीए की उम्मीदवारी से यहां से सांसद बने थे. कहा जा रहा है कि बिहार में बीजेपी और जेडीयू के ख़िलाफ़ विपक्षी पार्टियों का कुनबा इतना बड़ा हो गया कि यही अब समस्या बन गया है.

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर मानते हैं कि बिहार में आरजेडी के नेतृत्व में महागठबंधन का कुनबा जितना बड़ा हुआ है इससे उतना बड़ा फ़ायदा होता दिख नहीं रहा है.

सुरेंद्र किशोर कहते हैं, ''जीतन राम मांझी से महागठबंधन को बहुत फ़ायदा नहीं होने जा रहा. ऐसे में अगर वो तीन सीटें मांग रहे हैं तो इससे गठबंधन की समस्या ही बढ़ेगी न कि जीत की राह आसान होगी. दूसरी तरफ़ उपेंद्र कुशवाहा हैं. इनसे महागठबंधन को कुछ हद तक फ़ायदा हो सकता है लेकिन यह याद रखना चाहिए कुर्मी और कोयरी जाति में कोई बड़ी लक़ीर नहीं है. दोनों जातियां एक ही मानी जाती हैं. ऐसे में कुर्मी नीतीश को वोट करेंगे और कोयरी महागठबंधन को ऐसा नहीं लगता.''

नीतीश कुमार कुर्मी जाति से हैं और ग़ैर-यादव पिछड़ी जाति में यह सबसे ताक़तवर जाति है. उपेंद्र कुशवाहा कोयरी जाति से हैं लेकिन कोयरी और कुर्मी की कोई अलग पहचान नहीं मानी जाती है.

मतलब दोनों जातियों में बनाम वाली स्थिति नहीं रही है. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा के महागठबंधन में जाने से नीतीश की लोकप्रियता कोयरी जाति में कम होगी, ऐसा कहना मुश्किल है.

क्या राष्ट्रीय जनता दल ने एनडीए से आए कुशवाहा और जीतन राम मांझी को अपने कुनबे में शामिल कर ग़लती की है? सुरेंद्र किशोर मानते हैं कि सीटों के बँटवारे में यह स्थिति कोई चौंकाने वाली नहीं है.

वो कहते हैं, ''महागठबंधन में जिस तरह से आरजेडी को सीटों के बँटवारे को लेकर दिक़्क़त हो रही है उसी तरह से बीजेपी को भी हुई और बीजेपी को नीतीश और रामविलास पासवान के सामने झुकना पड़ा.''

आलोक साहनी के दरभंगा से चुनाव लड़ने की बात चल रही है लेकिन कांग्रेस यहां से कीर्ति आज़ाद को लड़ाना चाह रही है. महागठबंधन में पेच केवल सीटों के बँटवारे को लेकर ही नहीं है. इसमें एक और बुनियादी समस्या है जिसका असर इस गठबंधन के चुनावी नतीजों पर पड़ता है.

पटना में प्रभात ख़बर के स्थानीय संपादक अजय कुमार कहते हैं, ''2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 27 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस के लिए यह बड़ी जीत थी. लेकिन यह आरजेडी से गठबंधन के कारण ही संभव ही हो पाया. मतलब ये कि आरजेडी को जो पसंद करते हैं उन्हें गठबंधन के बाद कांग्रेस को वोट देने में कई दिक़्क़त नहीं होती है.''

अजय कुमार का मानना है कि सबसे बड़ी दिक़्क़त ये है कि जो कांग्रेस को पसंद करते हैं वो आरजेडी को वोट करेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है.

अजय कहते हैं, ''बिहार में कांग्रेस का सामाजिक या जातीय आधार पर कोई ठोस वोट बैंक नहीं है. लेकिन एक तबका मौजूद है जो कांग्रेस को पसंद करता है पर वो आरजेडी को पसंद नहीं करता. मतलब महागठबंधन के भीतर वोटों का ट्रांसफर आसान नहीं है.''

माना जा रहा है कि बिहार में चुनाव दो ध्रुवीय है. एनडीए बनाम महागठबंधन. ऐसे में कई लोगों का यह भी कहना है कि इन दोनों गठबंधनों से अलग होकर किसी भी क्षेत्रीय पार्टी के लिए चुनाव लड़ना आसान नहीं है.

महागठबंधन में इस बार वैसी पार्टियों को जगह दी गई है दो पिछले कुछ दशक से एक भी सीट नहीं जीत पाई हैं. सीपीआई और सीपीआईएमएल उन्हीं में से हैं. मुकेश साहनी और जीतन राम मांझी भी इस मामले में नए खिलाड़ी ही हैं.

आरजेडी का माय यानी मुस्लिम यादव समीकरण अटूट माना जाता है. यह समीकरण 90 के दशक से ही हिट रहा है और लालू को सत्तासीन करने में इसकी बड़ी भूमिका रही है. हालांकि धार्मिक ध्रुवीकरण और राष्ट्रवाद के चुनावी मुद्दा बनने की शक्ल में इस समीकरण के दरकने का डर होता है.

पुलवामा में चरमपंथी हमले के बाद भारतीय सेना की एयरस्ट्राइक का बिहार बीजेपी ने ख़ूब प्रचार-प्रसार किया. क्या इससे लालू के माय समीकरण पर कोई असर पड़ेगा? सुरेंद्र किशोर मानते हैं कि माय समीकरण वाक़ई अटूट रहा है. वो मानते है कि मुस्लिम भले बँट जाएं लेकिन यादव नहीं बँटेंगे.

बिहार में मधेपुरा ज़िले के बारे में कहा जाता है कि रोम में पोप और मधेपुरा में गोप. मतलब मधेपुरा में यादव बिहार के किसी भी ज़िले से सबसे ज़्यादा हैं.

मधेपुरा में एक सरकारी बैंक के मैनेजर ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि भारतीय सेना की एयर स्ट्राइक बाद मधेपुरा में दिवाली जैसा माहौल था. उनका कहना है कि शहर में राष्ट्रवादी नारे लगाए जा रहे थे.

उस बैंक मैनेजर का कहना है कि टीवी और इंटरनेट पर प्रसारित होने वाली सामग्री से बिहार के चुनाव में जातीय समीकरणों का ताना-बाना टूटता दिख रहा है और संभव है कि इसका असर बिहार के चुनाव में दिखे.

Thursday, March 7, 2019

जैश-ए-मोहम्मद के कैंप पर हमले की सैटेलाइट तस्वीरों की हक़ीक़त: फ़ैक्ट चेक

मोदी सरकार के मंत्री गिरीराज सिंह ने एक बड़े हिन्दी न्यूज़ चैनल का वीडियो 'भारतीय वायु सेना के हमले में ध्वस्त हुए तथाकथित चरमपंथी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के कैंप' का बताते हुए शेयर किया है.

गिरीराज सिंह ने अपने ट्वीट में लिखा, "ये तस्वीरें साफ़-साफ़ बता रही हैं कि भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी आतंकी ट्रेनिंग कैंप के परखच्चे उड़ा दिए".

इस वीडियो में दो सैटेलाइट तस्वीरें दिखाई गई हैं जिनमें से एक तस्वीर हमले से पहले (23 फ़रवरी) की बताई गई, जबकि दूसरी तस्वीर को हमले के बाद (26 फ़रवरी) का बताया गया है.

हज़ारों लोग सोशल मीडिया पर उनकी इस वायरल वीडियो को शेयर कर चुके हैं. जबकि असंख्य ऐसे लोग हैं जिन्होंने शेयर चैट, व्हॉट्सऐप, ट्विटर और फ़ेसबुक पर इन सैटेलाइट तस्वीरों को 'भारतीय हमले में जैश के कैंप में हुए नुक़सान' के सबूत के तौर पर पेश किया है.

भारतीय वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ये साफ़ कर चुके हैं कि 'वायु सेना ने दिए गए अधिकांश लक्ष्यों को सफ़लतापूर्वक निशाना बनाया, लेकिन इस हमले में कितने लोग मरे ये गिनना उनका काम नहीं है.'

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह समेत कई अन्य बीजेपी नेता ये दावा कर चुके हैं कि इस हमले में 200 से ज़्यादा चरमपंथी मारे गये और जैश के कैंप को भारी नुकसान हुआ है.

लेकिन इसे सही साबित करने के लिए दक्षिणपंथी रुझान वाले अधिकांश ग्रुप्स में और केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह द्वारा जो दो सैटेलाइट तस्वीरें शेयर की गई हैं, उनसे जुड़े दावे बिल्कुल ग़लत हैं.

ये दो सैटेलाइट तस्वीरें रॉयटर्स द्वारा बुधवार को जारी की गईं उन तस्वीरों से भी मेल नहीं खातीं, जिन्हें भारतीय मीडिया ने एक बार फिर एयरस्ट्राइक में हुई क्षति को दिखाने के लिए इस्तेमाल किया है.

रिवर्स इमेज सर्च से हम कुछ ऐसे फ़ेसबुक और ट्विटर यूज़र्स तक पहुँचे जिन्होंने इन सैटेलाइट तस्वीरों के 'लाइव कोऑर्डिनेट्स' भी शेयर किए हैं. यानी ये बताया है कि नक्शे पर ये जगह कहाँ स्थित है.

गूगल मैप्स पर जब हमने इसे खोजा तो पता चला कि ये न्यू बालाकोट के पास बसे जाबा में स्थित किसी इमारत की सैटेलाइट तस्वीर है.

भारतीय वायु सेना के हमले के बाद कुछ भारतीय इंटरनेट यूज़र्स ने इस इमारत को नये नाम देने की कोशिश की है. फ़िलहाल इस लोकेशन पर 'जैश मदरसा' और 'जैश ट्रेनिंग स्कूल' भी लिखा हुआ दिखाई दे रहा है.

गिरीराज सिंह के ट्वीट में जो वीडियो दिख रहा है, उसमें टीवी चैनल ने दावा किया है कि गूगल मैप पर दिख रही हमले से पहले की सैटेलाइट तस्वीर 23 फ़रवरी की है और दूसरी तस्वीर हमले के बाद की है. लेकिन ये दोनों ही दावे गड़बड़ हैं.

अपनी पड़ताल में बीबीसी ने पाया कि दूसरी तस्वीर 'ज़ूम अर्थ' नाम की वेबसाइट से ली गई है जो कि नासा और माइक्रोसॉफ़्ट के बिंग मैप्स की मदद से सैटेलाइट तस्वीरें दिखाती है.

इस वेबसाइट के संस्थापक हैं पॉल नीव जो लंदन में रहते हैं. पॉल नीव से बीबीसी संवाददाता प्रशांत चाहल ने इन तस्वीरों के बारे में बात की.

पॉल ने बताया, "जो तस्वीर सोशल मीडिया पर हवाई हमले के बाद ध्वस्त हुई बिल्डिंग की बताई जा रही है, वो एक पुरानी तस्वीर है."

पॉल ने साफ़ कहा, "सिर्फ़ नासा ही रोज़ाना नई तस्वीरें अपडेट करता है. बिंग मैप्स की तस्वीरें रोज़ अपडेट नहीं होतीं. ऐसा करना मुश्किल काम है क्योंकि सभी सैटेलाइट तस्वीरें अपडेट करने में सालों का वक़्त लगता है".

लेकिन ये वायरल तस्वीर कितनी पुरानी होगी? इसके जवाब में पॉल ने कहा, "मैं इतना कह सकता हूँ कि ये कुछ दिन या महीनों नहीं, बल्कि वर्षों पुरानी तस्वीर होगी. मेरे ख्याल से इस सैटेलाइट तस्वीर में दिख रही इमारत निर्माणाधीन है".

'ज़ूम अर्थ' वेबसाइट के संस्थापक पॉल नीव ने सार्वजनिक तौर पर एक ट्वीट करके भी ये दावा किया है कि इन तस्वीरों का एयरस्ट्राइक से कोई लेना-देना नहीं है.

अब बात पहली तस्वीर की जो कि गूगल मैप्स से ली गई एक सैटेलाइट तस्वीर है.

ये पाकिस्तान के जाबा में स्थित उसी जगह की है लेकिन इमारत के हालात को देखकर लगता है कि ये थोड़ी हालिया तस्वीर है.

टीवी चैनल ने दावा किया था कि ये सैटेलाइट तस्वीर एयरस्ट्राइक से पहले (23 फ़रवरी) की है.

लेकिन इस दावे पर कई सोशल मीडिया यूज़र अब ये सवाल उठा रहे हैं कि अगर ये तस्वीर 23 फ़रवरी की है, तो उसके बाद गूगल मैप पर इस इमारत की दशा क्यों नहीं बदली?

ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो कि केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह के दावे पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं.